जौहर विश्विद्यालय को बचाने के लिये आगे आए समाज का प्रबुद्ध वर्गः इंजीनियर मोहम्मद जाबिर

नई दिल्ली
रामपुर की एक अदालत ने सपा सांसद मोहम्मद आज़म ख़ान द्वारा बनाई गई मौलाना मोहम्मद अली जौहर विश्विद्यालय के मुख्य द्वार को तोड़ने के आदेश दिए हैं। कोर्ट के इस फैसले की राजनीतिक समाजिक गलियारे में आलोचना हो रही ही। समाज सेवी इंजीनियर मोहम्मद जाबिर ने कोर्ट के इस फैसले को यूपी की भाजपा सरकार की ‘डर्टी पॉलिटिक्टस’ करार दिया है। उन्होंने समाज के बुद्धिजीवी वर्ग से अपील की है कि समाज के प्रबुद्ध वर्ग को जौहर यूनिवर्सिटी को बचाने के लिये आगे आना चाहिए।
समाजिक संगठन Social Educational Welfare Association (SEWA) के चेयरमैन और आम आदमी पार्टी दिल्ली के वार्ड 102-S के अध्यक्ष इंजीनियर मोहम्मद जाबिर ने एक बयान जारी कर कहा कि महान स्वतंत्रता सेनानी मौलाना मोहम्मद अली जौहर के नाम इस देश की सरकारें कोई शिक्षण संस्थान या रिसर्च संस्थान नहीं बना पाईं। ये काम आज़म ख़ान ने किया तो जौहर यूनिवर्सिटी सरकार की आंखों में चुभने लगी, जिसे ज़मींदोज़ करने के नए हथकंडे अपनाए जा रहे हैं।
उन्होंने भारतीय जनता पार्टी और उसके अनुषांगिक संगठन आरएसएस पर निशाना साधते हुए कहा कि पहले BJP/RSS ने मस्ज़िद गिराई, फिर उस पर मंदिर बनवाया। लव जिहाद धर्मांतरण के सोशे छोड़े अब जौहर यूनिवर्सिटी गिरा रहे है। बाद मे मुसलमानो के इदारें और तंज़ीमें गिराएंगे। एक दिन इन का बुलडोज़र मुसलमानों के घरों को रौंदने के लिए आएगा। यही गुजरात मॉडल है, इसी दिन का वादा किया गया था।
इंजीनियर मोहम्मद जाबिर ने कहा कि आज़म ख़ान राजनीतिक व्यक्ति हैं, उनसे राजनीतिक मतभेद हो सकते हैं। लेकिन उनके द्वारा एक महान स्वतंत्रता सेनानी के नाम पर बनाई गई यूनिवर्सिटी से किसी को दुश्मनी नहीं निकालनी चाहिए। जाबिर इंजीनियर ने कहा कि यह यूनिवर्सिटी उस महान शख्सियत के नाम पर बनी है। जिन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में खुद पहले और बाद में सिर्फ और सिर्फ हिंदुस्तानी बताया था।

जानकारी के लिये बता दें कि मौलाना अली जौहर ने एक बार कहा था कि जहां तक ख़ुदा के एहकाम का तआल्लुक़ है, मै पहले मुसलमान हूं, बाद मे मुसलमान हूं, आख़िर में मुसलमान हूँ, लेकिन जब हिंदुस्तान की आज़ादी का मसला आता है तो मैं पहले हिंदुस्तानी हूँ, बाद में हिंदुस्तानी हूँ, आख़िर में हिंदुस्तानी हूँ। इसके अलावा कुछ नही। जाबिर इंजीनियर मौलाना मोहम्मद अली जौहर के इसी कथन का हवाला देते हुए उनके नाम पर बनी जौहर यूनिवर्सिटी के संरक्षण की मांग की है।

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