रवीश कुमार
भारत में विगत 24 घंटे में कोरोना के 9304 नए मामले हैं। विगत चार दिनों से 8000 से अधिक मामले सामने आ रहे है। पूरे देश में कोविड-19 से संक्रमित मरीज़ों की संख्या 2,16,919 हो गई है। कल एक दिन में 260 लोगों की मौत हुई है। कुल 6075 लोग मरे हैं।
सबसे अधिक मौत महाराष्ट्र और गुजरात में हुई है। कोविड-19 से मरने वालों की संख्या का 60 फीसदी इन्हीं दो राज्यों से है। महाराष्ट्र में 72300 हो गई है। 2465 लोग मारे जा चुके हैं। तमिलनाडु में 24, 586। गुजरात में संक्रमित केसों की संख्या 18117 हो गई है। बुधवार को एक दिन में सबसे अधिक 485 केस दर्ज किए गए। गुजरात में 1122 लोग मर गए हैं। इसमें से 910 लोगों की मौत अकेले अहमदाबाद में हुई है। अहमदबादा में संक्रमित केसों की संख्या 13000 से अधिक हो गई है। दिल्ली में भी कोविड-19 के 22 हज़ार से अधिक मामले हो गए हैं। 15 दिनों में कंटेनमेंट एरिया की संख्या दो गुनी हो गई है।
दुनिया के कई देशों ने तालाबंदी या उसके विकल्पों का इस्तमाल कर कोरोना के संक्रमण को इन तीन चार महीनों में कम किया है। ऐसा लगता है कि भारत ने सबकुछ राम भरोसे छोड़ दिया है। जिस तरह से संक्रमण फैलता जा रहा है, अब समझ में नहीं आ रहा है कि दो महीने तक तालाबंदी कर अर्थव्यवस्था की रीढ़ क्यों तोड़ दी गई? करोड़ों लोग बेरोज़गार हो गए।
अगर जान बचाने के लिए तालाबंदी की गई थी तो संक्रमण की हालत ऐसी क्यों है? जल्दी ही इस नाकामी के लिए आबादी का थ्योरी लांच कर दिया जाएगा। इतनी बड़ी आबादी है तो क्या करें। हर नाकामी का यह अचूक मंत्र हो गया है। आबादी ही इतनी है तो क्या करें। भाषण देना हो तब आबादी में ही दम नज़र आता है, जब जवाबदेही से बचना हो आबादी ही दुश्न नज़र आता है। तो फिर जो पहले किया था वो क्या सोच समझ कर किया था। उसका लाभ उठाकर इस संक्रमण के फैलाव को रोका क्यों नहीं गया? क्या हम फिर से तालाबंदी की तरफ बढ़ रहे हैं? या अब लोगों को मरने के लिए छोड़ दिया जाएगा?