बहुसंख्यकों के एक बहुत बड़े वर्ग को यह यक़ीन दिला दिया गया है कि उनकी हर समस्या का इकलौता कारण मुसलमान है

अशफ़ाक़ अहमद
लेटेस्ट ट्रेंड के मुताबिक मीडिया/सोशल मीडिया/ फिजिकल नेटवर्क के ज़रिये खास कर हिंदी पट्टी में बहुसंख्यकों के एक बहुत बड़े वर्ग को यह यक़ीन दिला दिया गया है कि उनकी हर समस्या का इकलौता कारण मुसलमान है, जिसके रियेक्शन में वे खुल कर वोट सपोर्ट और अपनी बुद्धि एक पार्टी के पक्ष में रिजर्व कर चुके हैं.. ठीक है, लेकिन इनमें भी दो धड़े हैं। एक वह है जो खुल कर इस नफरत का प्रदर्शन करता है और दूसरा वह है जो सेकुलरों के बीच घुसा रहता है, अपने शब्दों को नियंत्रित रखता है, अपनी नफरत छुपा कर रखता है लेकिन मन में भाव वही रहता है। इन दोनों धड़ों के लोग समझने समझाने की सीमा से परे जा चुके हैं और इनके साथ मगजमारी का कोई फायदा नहीं, तो इन्हें इग्नोर/ब्लाॅक करना ही बेहतर उपाय है।

लेकिन फिर भी एक वर्ग ऐसा है जो इनके बहकावे में आता दिखता है, कनफ्यूज्ड रहता है, मन में अभी नफरत अस्थाई तौर पर है तो इन्हें समझाने की कोशिश की जा सकती है। तो खास इन्हीं लोगों से ऐसे ही कुछ टिपिकल से इल्ज़ामों पर इस तरह तर्क वितर्क किया जा सकता है 👇

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● मुसलमानों जहां बहुसंख्यक होता है, वहां फौरन शरई व्यवस्था कायम करना चाहता है।


■ मुस्लिम बहुल आबादी वाले पचास से ऊपर मुल्क हैं, इनमें यूएसएसआर से अलग हुए सारे देश, तुर्की, इंडोनेशिया, मलेशिया जैसे कई देश घोषित तौर पर सेकुलर हैं, जो डिक्लेयर्ड सेकुलर नहीं हैं, वहां भी सिस्टम इस्लामिक नहीं है, गल्फ के कुछ देशों को छोड़ कर। खराब हालात या तो सीरिया, ईराक के हैं, जिनकी वजह तेल पर कब्ज़े की लड़ाई है, या अखंड भारत वाले हिस्से के वे देश हैं जिनका डीएनए एक है, इनमें हम सबसे बेहतर थे, लेकिन अब हम भी बराबरी पर हैं।

● मुसलमानों के बीच कोई अल्पसंख्यक सुरक्षित नहीं रहता।


■ देशों में बात करें तो भारतीय उपमहाद्वीप के देश (जिनका कि डीएनए एक कहा जाता है) छोड़ कर और आंतरिक संघर्ष में फंसे सीरिया, ईराक छोड़ कर बाकी किस देश में आपको ऐसी स्थिति दिखती है? एक अधिकारिक आंकड़ा तलाशिये जो बताये कि गल्फ कंट्रीज, यूएसएसआर वाले देश या तुर्की, इंडोनेशिया, मलेशिया में रहते लाखों हिंदुओं में से किसी के साथ कोई धार्मिक आधार पर हुए उत्पीड़न की कोई एक भी घटना हुई हो। अगर हिंदू मुसलमानों के बीच इतने ही असुरक्षित हैं तो लाखों की तादाद में मुस्लिम देशों में खुशी-खुशी नौकरी न कर रहे होते। देश में जो शहर/कस्बे मुस्लिम बहुल हैं, उनकी संख्या सैकड़ों मेें हो सकती है लेकिन ऐसे सौ उदाहरण भी आपको शायद ही मिलें जहां अल्पसंख्यक हिंदुओं पर धार्मिक नजरिये से अत्याचार हुआ हो। तत्कालिक स्थिति में मारपीट/दंगा हो जाना अलग स्थिति है। कश्मीर में जरूर ऐसा कुछ हुआ है, लेकिन वे दुनिया भर के मुसलमानों के प्रतिनिधि नहीं।

● पाकिस्तान में आजादी से पहले इतने प्रतिशत हिंदू थे, अब पता करो कि कितने बचे हैं।
■ पाकिस्तान में कभी इतने उतने हिंदू नहीं थे, मात्र दो प्वाइंट समथिंग प्रतिशत ही हिंदू थे। उस वक्त ऐसी कोई जनगणना ही नहीं हुई थी, लास्ट 1941 में जो हुई थी, उसके हिसाब से अलग हुए पूर्वी/पश्चिमी दो हिस्सों में हिंदुओं की मुख्य आबादी पूर्वी पाकिस्तान में थी जो बाद में बांग्लादेश बना और बनने के पहले से ले कर बाद तक (आज तक जारी है) हिंदुओं का पलायन अपनी नैसर्गिक भूमि भारत की तरफ़ हुआ और इन्हीं की घुसपैठ उधर के सरहदी राज्यों में मुद्दा बनी रहती है। इस पलायन से वहां हिंदुओं की आबादी घटी। हां, थोड़ा बहुत धर्म परिवर्तन भी हुआ (जिसमें कई केस जबरन धर्म परिवर्तन के भी हैं), लेकिन यह सिलसिला तो भारत में भी लगातार चल ही रहा है, यहां आजादी के बाद यह शिफ्टिंग ईसाइयों की तरफ़ ज्यादा हुई है।

● मुसलमान सड़कों को घेर कर नमाज पढ़ते हैं, जिससे आम जनता को परेशानी होती है।


■ यह जेनुईन समस्या है, मुस्लिम उलेमाओं को इस पर काम करना चाहिये लेकिन यह या तो जुमे की नमाज के वक्त हफ्ते में एक बार होती है या गिनी-चुनी मस्जिदों में रमजान के टाईम बारह-चौदह दिन तक तरावीह के चलते.. इसका मुख्य कारण आबादी के अनुपात में जगह की कमी होता है, जिस पर नमाज को एक से ज्यादा शिफ्टों में करके काबू पाया जा सकता है, तरावीह को किसी और जगह पढ़ाया जा सकता है.. लेकिन इसके साथ ही आपको थोड़ी रिसर्च करने की जरूरत है कि देश के कितने शहरों में, शहरों के कितने पार्कों, सड़कों, सार्वजनिक जगहों पर अवैध कब्जे करके मंदिर बना के रखे गये हैं, ऑफकोर्स यह संख्या इतनी ज्यादा है कि आपके कानों से धुआं निकल जायेगा। कई तरह की परेशानी का कारण यह मंदिर और इनसे रिलेटेड जब तब होने वाले प्रोग्राम भी बनते हैं, लेकिन उस पर आप कभी मुंह नहीं खोलते।

मुसलमान लाउडस्पीकर पर अज़ान से ध्वनि प्रदूषण फैलाते हैं।


■ ठीक है, धार्मिक न होने के कारण मुझे भी कई बार सुबह के वक़्त इससे परेशानी होती है और इन पर रोक होनी चाहिये, लेकिन इस प्वाइंट पर आपको यह समझने की ज़रूरत है कि अगर वाकई आपकी समस्या ध्वनि प्रदूषण ही है तो इसे कौन कितना फैला रहा है। अजान का टाईम कमोबेश एक ही रहता है और अवधि तीन से चार मिनट, यानि दिन भर में पंद्रह मिनट के आसपास, बरेलवी सलात का थोड़ा एक्सट्रा शोर मचाते हैं और फज़िर के बाद कई मस्जिदों में बयान भी होता है, रमज़ान में सुबह भी काफी शोर मचाते हैं जिसकी अवधि आधे घंटे से ज्यादा हो सकती है, लेकिन इस पूरे शोर को साल भर में जोड़ेंगे तो कुल पांच से छः दिन भर का शोर बनेगा.. अब ठीक इसी तरह अपने यहां मंदिरों में होने वाली आरती, कथा, जगराते, धार्मिक उत्सवों/यात्राओं में होते शोर, बड़े मंगल जैसे मौकों पर होते शोर, या और भी इस तरह होने वाले सभी प्रोग्रामों में होते शोर को कैलकुलेट कीजिये और फिर दोनों की तुलना कीजिये, मुझे उम्मीद है कि आपको शर्म आ जायेगी। यहां यह भी ध्यान रहे कि मुसलमानों में यह शोर मस्जिदों से ही होता है जबकि हिंदुओं में इंडीविजुअल्स भी अपने घर पर धार्मिक प्रोग्राम के तहत यह शोर जनरेट करते हैं। अब बताइये कि ध्वनि प्रदूषण के मामले में आपकी पहली आपत्ति किस पर होनी चाहिये?

अब मार्केट में एक लेटेस्ट इल्जाम आया है कि देश भर में रामनवमी के जुलूसों पर पथराव क्यों कर रहे हैं मुसलमान


■ जो भी कर रहे हैं, गलत है लेकिन इसके साथ ही आप कुछ दूसरे सवालों के जवाब भी तलाश कीजिये, जो आप सीधे हजम कर गये। यह जुलूस इसी साल निकलने शुरु हुए हैं, पहले भी निकलते रहे हैं और रामनवमी छोड़िये, विसर्जन के जुलूस मिला कर साल भर में तीस दिन से ज्यादा हिंदुओं के धार्मिक जुलूस निकलते हैं। क्या सब पर पत्थरबाजी हो रही है हमेशा से? सिख भी जुलूस निकालते हैं, उन पर क्यों नहीं पत्थरबाजी होती? जुलूस धार्मिक है, तो उसमें लाठी, डंडे, तलवारें लेकर लोग किसलिये शामिल हो रहे और क्यों मुसलमानों की मां खोदने, मुहम्मद को गरियाने की ज़रूरत पड़ रही?क्यों मस्जिदों के सामने इकट्ठे हो कर आपत्तिजनक नारे लगाने, हथियार लहराने, मस्जिद पर चढ़ कर भगवा झंडा लगाने की ज़रूरत पड़ रही? क्या वाक़ई ऐसे जुलूस को आप “भगवान राम के लिये” निकला मानते हैं? एक पल के लिये कल्पना कीजिये कि ऐसे ही मुसलमानों की भीड़ आपके घरों के सामने, मंदिरों के सामने इकट्ठे हो कर आपको गालियां दे, आपके अराध्यों को गालियां दे, आपकी माँ बहन को उल्टा सीधा बोले.. तो खुद आपकी प्रतिक्रिया क्या रहेगी? खास कर तब, जब प्रशासन की भूमिका भी उन्हीं मुसलमानों के पक्ष में हो।

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